१९ नवम्बर , सन् १९७२ भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति , स्व. वाराहगिरी वेंकटगिरी , दक्षिण अमेरिका के एक देश ब्राजील के दौरे पर होते हैं | उस दिन उन्हें ब्राजील के एक शहर सैल्वाडोर ( SALVADOR ) में एक विश्वविद्यालय के प्रेक्षागृह ( AUDITORIUM ) का उदघाटन करना था |
वहां के समारोह में श्री गिरी का परिचय उदघोषक ने कुछ इस प्रकार करवाया था |
" आज हमारे मुख्य अतिथि श्री वा. वे. गिरी ( राष्ट्रपति भारत देश ) जी हैं | आप सभी की जानकारी के लिए बता दें कि तीसरी दुनिया का एक प्राचीन देश भारत है जहाँ आज भी लाखों लोग गले में साँप लटकाए हुए नंगे घूमते हैं |भारत नदियों , पहाडों का वह देश है जिसमें अंधविश्वासों का बोलबाला है साधू एवं फ़कीर इस देश को चलाते हैं |महात्मा गाँधी नाम का व्यक्ति इस देश में हुआ था जिसने ब्रिटिश लोंगों से आज़ादी दिलाई थी | इनके देश में आज भी ५० % की जनसँख्या भूखी सोती है | यह देश विश्व बैंक के सबसे बड़े कर्ज़दार देशों में से है | "
( उपर्युक्त परिचय श्री गिरी के कार्यक्रम में सम्मिलित होने वाले आगंतुकों को सभा प्रारम्भ होने के ३० मिनट पूर्व दिया गया था | )
शायद आज हममें से कुछ लोग चौंक पड़ें , लेकिन तत्कालीन भारत की वही पहचान थी | अगर आज हमें भारत बदला हुआ दिखाई दे रहा है तो इसका श्रेय जाता है तीव्र औद्योगीकरण को , जिसके नायक थे स्व. धीरजलाल हीराचंद अम्बानी | स्वतंत्र भारत को अगर तेजी से विकास की रफ़्तार पर ले जाने का श्रेय किसी को जाता है तो वह व्यक्ति सिवाय धीरुभाई के कोई हो ही नहीं सकता | यह व्यक्ति ना सिर्फ़ भारत की औद्योगिक क्रांति का नायक बना बल्कि हर क्रांति के पुरोधा की तरह अपना सम्पूर्ण दर्शन भी हमारे सम्मुख छोड़ गया |
भारत अगर आज वाकई एक महाशक्ति बनना चाहता है तो हमें करोड़पतियों की एक ऐसी फौज चाहिए जो कि विकास चक्र को पर्याप्त मात्र में ईंधन उपलब्ध कराती रहे | आज की सृष्टि में तो इसका कोई विकल्प नहीं है |
जरा धीरुभाई के दर्शन को देखें कैसे वो हमें प्रेरित कर रहा है ?
धीरुभाई ने इस सिद्धांत को सबसे ज्यादा सफल बनाया कि हर धन्धे का बाप पकडो कारोबार अपने आप बढेगा |मतलब कि श्रृंखला की प्रथम कड़ी से मुनाफा बनाकर तुंरत अगली कड़ी को व्यवसाय में जोड़ लो , रिलायंस का ही उदहारण लें तो सबसे पहले पोलिस्टर बेचना , फ़िर उसे बनाना , फ़िर उसके धागे का विनिर्माण , फ़िर धागे की जरुरत के केमिकल का निर्माण , फ़िर केमिकल के स्त्रोत पेट्रोलियम की रिफायनरी की क्रमबद्ध श्रृंखला ने रिलायंस को आज कहाँ पंहुचा दिया |
दूसरा सिद्धांत था कि देशहित में मौजूदा सड़े हुए व्यावसायिक विधान को मानने का कोई मतलब नहीं | अम्बानी के तीव्र विकास का ही प्रतिफल था कि १९९१ में भारत को नेहरूवादी अर्थव्यवस्था से मुक्ति मिली | ( संदेह हो तो नियमों मसलन ( MRTP ACT 1969 ) के बदलाव में रिलायंस की भूमिका देखें |
तीसरी बात थी कि कारोबार में जितना कमाओ सामने वाले को उससे ज्यादा दो | आज १ करोड़ शेयर धारकों में से जिसने भी ५ साल से ज्यादा शेयर को रखा है उसे इस बात की सत्यता से कोई परहेज़ न होगा |
अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात भारत के युवाओं को आत्मनिर्भरता का वो सपना देना जिससे विकास हमारी शर्तों पर हो न कि किसी और देश से नौकरी और गुलामी आयात करके | इसी सपने ने ' देश का श्रम देश के लिए ' की भावना बढाई और अन्य व्यापारिक दिशाओं पर तेजी से बढ़ते हुए उद्यमियों को प्रोत्साहित भी किया |
आज भारत को यदि आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरना है तो हमें आज ऐसे गुरुओं की आवश्यकता है जो की १००० धीरुभाई देश के लिए तैयार कर सकें |
" सत्यमेव जयते " ||
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