हमारे मन - मष्तिस्क में यह प्रश्न अनादिकाल से बार - बार प्रकट होता रहा है | हम पुरुषों में प्रायः इस बात पर चर्चा होती ही रहती है कि स्त्री का चरित्र कितना गहरा हो सकता है ?
पुरुषों की टोली , जहाँ यह चर्चा जारी रहती है अंततः सभी इस निष्कर्ष तक ( अधिकाँश समय ) पहुंचते हैं कि " स्त्री का मन और उसका चरित्र तो साक्षात् ईश्वर भी नहीं भाँप सकते तो हम क्या चीज़ हैं ? स्त्री का चरित्र तो त्रि-आयामी स्वरुप लिए होता है , कब कौन सी बात पर क्या रंग दिखलायेगा यह अनुमान लगाना ब्रम्हा के लिए भी कदाचित् दुष्कर कार्य है " |
चलो यह तो हुआ पुरूष प्रधान समाज के एक बड़े हिस्से का निर्णय लेकिन जहाँ तक मेरे जीवन के अनुभवों को मैं खंगालता हूँ तो यह बात सामने आती है कि मुझे व्यक्तिगत रूप से स्त्री के मन को समझने में कोई समस्या नहीं आती | मेरे लिए किसी भी स्त्री का मन उतना ही साफ़ है जितना कि हो सकता है | मेरे ख्याल से स्त्री को समझना बिल्कुल भी कठिन नहीं है , किंतु इसके लिए पुरूष को अपने अभिमान के दायरे से बाहर आना होगा | स्त्री को समझने का प्रयास इस जगत को नई आशाओं से भर देगा |
स्त्री के चरित्र को समझने के लिए संभवतः सबसे आवश्यक बात है पुरूष को स्त्री के गुणों जैसे ममता , दया और समर्पण के अनुरूप मानसिकता के स्तर को प्राप्त करना होगा | आज तक पुरूष ने कभी इस स्तर तक जाने का प्रयास सामाजिक रूप से नहीं किया इसीलिए आज भी समाज को " ढोल गंवार शूद्र पशु नारि , सकल ताड़न के अधिकारी |" जैसी मानसिकता ने अपनी चपेट में ले रखा है | अब वो समय आ गया है कि पुरूष अपने स्त्रैण गुणों को जागृत करे और ईश्वर कि इस सर्वश्रेष्ठ रचना से अपने साहचर्य को आनंद की पराकाष्ठा तक ले कर जाए |
मैंने अपनी पिछली पोस्ट में प्रश्न किया था कि " ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन है ? स्त्री या पुरूष |" ||
इसके उत्तर में ढेरों नपी - तुली टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं | मित्रों इतिहास में इस प्रश्न का उत्तर निम्न प्रकार से दर्ज है |
प्रत्येक धर्म के अनुसार ईश्वर ने सर्वप्रथम पुरूष को बनाया | ईश्वर भी इस बात को स्वीकार करते हैं | वस्तुतः पुरूष के निर्माण के बाद ईश्वर ने अपनी इस महान रचना को हर कसौटी पर परखा , उसे इस महान धरती पर भेजा | बहुत सी परीक्षाएं भी लीं और अंततः यह विचार किया कि ,
" मैं इससे भी अच्छा बना सकता हूँ | "
" फ़िर ईश्वर ने स्त्री बनाई | "
" सत्यमेव जयते " ||
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युवा दृष्टि
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